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Durga Shatanama Stotram - श्री दुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र

This Stotra is a collection of 108 names of Goddess Durga and it is recited at the beginning of Durga Saptashati just before Patha Vidhi . Video

Shri Argala Stotram - देवी भगवती को प्रिय है अर्गलास्तोत्रम्

जीवन में सुख-शांति, मनोवांछित फल तथा अन्न-धन, वस्त्र-यश आदि की प्राप्ति के लिए दुर्गा सप्तशती का पाठ करना सर्वदा फलदायी रहता है। दुर्गा सप्तशती का पाठ न कर पाने वाले भक्त अगर कीलक स्तोत्रम, देवी कवच या अर्गलास्तोत्र का पाठ करके भी देवी भगवती को प्रसन्न कर सकते हैं। Video

Sri Rudrashtakam - श्रीरुद्राष्टकम्

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं। निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे हं॥1॥ व्याख्या -  हे मोक्षस्वरूप, विभु, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर व सबके  स्वामी श्री शिव जी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ. निजस्वरूप में स्थित अर्थात माया आदि से रहित, गुणों से रहित, भेद रहित, इच्छा रहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर आपको भजता हूँ  ॥1॥ निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं। करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो हं॥2॥ व्याख्या - निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय अर्थात तीनों गुणों से अतीत, वाणी, ज्ञान व इंद्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार के परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥ तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं। स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥ व्याख्या - जो हिमाचल समान गौरवर्ण व गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सर पर सु

Shri Jaharveer Goga Ji Chalisa and Aarti in Hindi - गोगाजी महाराज( सिद्धनाथ वीर गोगादेव)

कनकधारा स्तोत्र: शुक्रवार के दिन करें इस मंत्र का जाप, धन से भर जाएगी झोली

मनुष्य की अधिकांश परेशानियां धन से जुड़ी होती हैं, आदि शंकराचार्य द्वारा एक ऐसे ही मंत्र की रचना की गयी थी, जिसके सही और नियमित उच्चारण से मां लक्ष्मी भी आपके ऊपर धन बरसाने के लिए विवश हो जाएंगी। इस मंत्र को कनकधारा स्तोत्र कहा जाता है, जिसके नियमित उच्चारण से आपके जीवन की धन संबंधी परेशानियां दूर हो जाएंगी या कभी आपके समीप आ ही नहीं पाएंगी। ऐसा कहा जाता है कि एक बार अद्वैत मत के जनक आदि शंकराचार्य भोजन की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। एक महिला की नजर भिक्षा मांगते हुए उस बालक पर गई। उस महिला को बालक के प्रति अजीब सा खिंचाव महसूस हुआ। वह स्त्री बहुत निर्धन थी, उस बालक को कुछ भी अच्छा भोजन के लिए नहीं दे सकती, उस समय उसे अपने दुर्भाग्य पर बहुत क्रोध आ रहा था। आदि शंकराचार्य ने उस स्त्री से कहा कि जो भी उनके पास हैं, भले ही बहुत कम, लेकिन वह पर्याप्त है। उस स्त्री ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था और उसके पास एक बेर के अलावा व्रत खोलने के लिए और कुछ नहीं था। उसने वह बेर भी शंकराचार्य के पात्र में डाल दिया। वहां से निकलते हुए शंकराचर्य ने लक्ष्मी जी के मंत्र का जाप किया और तभी अचानक वहा